बचपन में उड़ता प्लेन देखकर देखा था पायलट बनने का सपना, लोगों ने ताने मारे… लेकिन आज ‘सभी की बोलती हुई बंद’

कहा जाता है कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता है। बहुत से लोग कम उम्र में ही कुछ सपने देखते हैं। लेकिन उम्र…

कहा जाता है कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता है। बहुत से लोग कम उम्र में ही कुछ सपने देखते हैं। लेकिन उम्र के साथ वो सपने भी टूटने लगते हैं और जिंदगी जिस दिशा में ले जाए उस दिशा में जाना पड़ता है। अब एक बेटी ने अपने बचपन के सपनों को साकार कर पिता का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है।

यह सपना जम्बूसर के बाहरी इलाके किमोज गांव में रहने वाले दुबे परिवार की बेटी उर्वशी(Urvashi) ने साकार किया है। जब वह छठी क्लास में पढ़ रही थी तो उसने आसमान में उड़ते हवाई जहाज को देखा और अपनी माँ से कहा कि “माँ मैं एक दिन हवाई जहाज़ उड़ाऊँगी, पापा मुझे भी पायलट(pilot) बनना है!”

उसके बाद उर्वशी ने अपने सपने को उड़ान भरने का फैसला किया और पायलट बनने के लिए कड़ी मेहनत करने लगीं। उर्वशी एक साधारण परिवार की बेटी थी। उनके पिता खेती करके अपने परिवार का गुजरान करते थे और परिवार मिट्टी के घर में रहता था। लेकिन उर्वशी के सपने पक्के थे और आज उन्होंने कॉमर्शियल पायलट बनकर अपने पिता, गांव और गुजरात का नाम रौशन किया है.

एक समय था जब कुछ लोगों ने उर्वशी के पायलट बनने के सपने का मजाक भी उड़ाया था। लेकिन इन सबका उर्वशी पर कोई असर नहीं पड़ा और वो अपने जुनून और मेहनत के प्रति सचेत रहीं और अब वही लोग जो पायलट बनने का मज़ाक उड़ाते थे अब वहीं लोगो आज उसे सबसी दे रहे हे.

उर्वशी के पिता अशोकभाई दुबे एक आम किसान हैं और उनकी मां नीलांबेन गृहिणी हैं। माता-पिता भी अपनी बेटी के सपनों को पूरा करना चाहते थे लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। फिर उर्वशी के चाचा पप्पू दुबे भी अपनी भतीजी के सपने को पूरा करने के लिए तैयार हो गए और उर्वशी को पायलट बनाने का सारा खर्च उनोंएहे  करने का फैसला किया।

लेकिन मानो मुश्किलें उर्वशी का साथ नहीं छोड़ रही थीं, कोरोना काल में उर्वशी के चाचा का भी देहांत हो गया और फिर आर्थिक तंगी आ गई. लेकिन फिर भी उर्वशी और उनका परिवार कड़ी मेहनत करता रहा और आखिरकार यह साबित करने में सफल रहा कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता।

उर्वशी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव के प्राथमिक विद्यालय में की। जहां उन्होंने 12वीं कक्षा विज्ञान में गणित विषय लेने के लिए अपने शिक्षकों और सीनियर्स से पूछा कि उन्हें पायलट बनने के लिए क्या करना चाहिए। जम्बूसर से वडोदरा से इंदौर और बाद में दिल्ली और अंत में जमशेदपुर तक, उर्वशी का सपना तब पूरा हुआ जब उन्हें कमर्शियल पायलट का लाइसेंस मिला।

उर्वशी को पायलट बनने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है, ओपन कैटेगरी में होने के कारण उन्हें न तो कोई स्कॉलरशिप मिली और न ही उन्हें बैंक से कोई लोन मिला। इतना ही नहीं इस परिवार को सिकुरेटी की वजसे प्रावेट लोन भी नहीं मिली । हालांकि, उन्होंने कड़ी मेहनत और कुछ लोगों की मदद से पायलट बनने का अपना सपना हासिल किया।