जिस उम्र में बच्चे खेलते हैं और पढ़ते हैं उस उम्र में शुगनी को नक्सलियों ने उनके घर से उठा लिया था। तकरीबन 9 साल की उम्र से करीब 10 साल तक शुगनी ने अपनी जिंदगी नक्सलियों के साथ काटी। लेकिन अभी के समय में परिवार वालों की हिम्मत और मेहनत के बलबूते पर आज वह एक सामान्य जीवन गुजार रही है।
साल 2002 में उसको झारखंड के चाईबासा जिले के सारंडा में स्थित उसके गांव से नक्सली बंदूक की नोक पर अपने साथ अगवा करके ले गए थे। उसने अपनी दो सहेलियों के साथ महुआ चुनने के लिए जंगल गई थी। लेकिन उसके बाद वह अपने घर बहुत दिनों के बाद लौटी। वह भी नक्सलियों ने उसको कुछ दिनकर में रहने की इजाजत दी लेकिन उसके बाद से कभी वापस नहीं गई। अभी वह अपनी जिंदगी जी रही है एक ऐसी जिंदगी जिससे वह जीना चाहती थी जिसका उसने सपना देखा था।
एक बार उसने बताया था कि मैं बहुत गरीब घर में पैदा हुई थी हम लोग दिन रात में एक बार खाना खा कर अपना जीवन गुजारा करते थे। ऐसे हालात में एक दिन हमारे गांव में नक्सलियों का एक दल पहुंचा तब वह मुझे उठा ले गए फिर मैंने वहां नक्सलियों के सभी काम किए और मुझे बंदूक चलाना भी आता था। उसने एक जानकारी में बताया था कि वहां करीब 400 नक्सली होते और उस लोगों ने 50 मेरे जैसी बच्ची और औरतों को गिरफ्तार किया था और उन से काम करवाते थे।
वह कहती है कि मेरी शादी मेरे परिवार वालों ने कर दी लेकिन नक्सलियों आज भी मेरे परिवार वालों को हैरान और परेशान करते हैं। कि उसे वापस भेजो वरना हम आपको नुकसान पहुंचाएंगे और आपकी मुश्किल या बढ़ाएंगे ऐसी धमकियों आनी शुरू हो गई। इन दिनों में हमारे गांव में आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह बनना शुरू हुआ और मैं उस समूह में जुड़ गई।