आप लोगों ने कहीं ऐसे लोगों के किस्से और बातें सुनी होगी कि वह लोग कम उम्र में भगवान के रक्षा में चले गए। लेकिन आज हम जो आपको बताने जा रहे हैं वह लड़की सिर्फ 8 साल की उम्र में ही भगवान को समर्पण हो गई। भिंड जिला के को क्षेत्र के चंबल के बीड़ी रानीपुरा गांव में बिटिया देवी जी मंदिर खूब प्रसिद्ध है।
इस गांव में करीब 24 साल पहले एक किशोरी का वैराग्य ग्रहण किया था। उसके बाद गांव के आसपास के लोग उसे देवी की तरह पूछने लगे और वह लोग कई जानवरों की बलि चढ़ाते थे। सूत्रों के अनुसार ललिता नाम की ज्योति ने अपने शरीर को 8 साल की उम्र में ही भगवान को समर्पित कर दिया था।
लोगों में यह मान्यता फैली है कि वह ललिता रानीपुर गांव के एक मंदिर में रहने लगी। उसके बाद खुद को इस मंदिर में बंद कर दिया और घंटो तक भगवान को याद करने लगी। उसके बाद गांव के लोगों ने मिलकर उनके लिए एक मंदिर बनवाया और उसको देवी बनाकर उसकी पूजा करने लगे।
आज यानी कि 24 साल बाद भी लोग ललिता देवी की पूजा और आरती करते हैं। हैरान रखने वाली बात तो यह है कि ललिता देवी के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में लोग आते हैं।नवरात्रि के त्योहार के दौरान इस गांव में काफी शोर होता है। बेंगलुरु ज्ञान देवी के दर्शन करने आते हैं और उपहार भी लाते हैं। यहां ललिता देवी के माता पिता के बारे में किसी को भी कुछ नहीं पता है।
कहा जाता है कि जब वह छोटी थी तब उसे परिवार के लोगों ने निकाल दिया था। और ललिता ने बताया था कि वह बचपन से ही व्रत रखना शुरू कर दिया था और उसने अपना सारा समय मंदिर में ही बिताया था। फिर वह यहां आ गई और गांव के लोगों ने एक पूजा स्थल बनाने का फैसला किया और पिछले 24 सालों से वह यहां पूजा स्थल यानी कि मंदिर में अपना जीवन गुजारा कर रही है।
गांव के लोगों ने ललिता देवी की अपनी पुरानी जिंदगी यों के बारे में पूछा तो सिर्फ एक बार ही बताया और गांव के लोगों ने उसे याद कर लिया और उसने कहा कि उसके पिता लाल सिंह इटावा थाने में इंस्पेक्टर थे और उसके चार बच्चे थे। उन सभी की शादी बचपन में ही की गई थी लेकिन ललिता देवी ने शादी का इनकार कर दिया और वह वहां से भाग गई। उस मंदिर में जो देवी की प्रतिमा है। लोग उसे जो खाना देते हैं वही खाना फिर ललिता देवी खा लेती है।