आईएएस(IAS) की सक्सेस स्टोरी में आज हम आपको एक ऐसी लड़की से मिलवाने जा रहे हैं जिसकी सफलता की कहानी को सलाम करने का आपका मन करेगा। इस लड़की का नाम उम्मुल खेर(Ummul Kher) है। उम्मुल जन्म से ही विकलांग थीं, लेकिन उन्होंने विकलांगता को ही अपनी ताकत बना लिया और झुग्गी में रहने से लेकर आईएएस बनने तक का सफर तय किया। उम्मुल ने मीडिया से बात करते हुए अपने संघर्ष की कहानी सुनाई। आइए जानते हैं इस बेजोड़ सफलता की कहानी के बारे में।
दिल्ली के निजामुद्दीन बस्तियों में में बीता बचपन:
उम्मुल का जन्म पाली मारवाड़, राजस्थान में हुआ था। उम्मुल विकार के साथ पैदा हुआ था। एक ऐसी बीमारी जिससे बच्चे की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। हड्डियों के कमजोर होने के कारण बच्चे के गिरने पर फ्रैक्चर होने की संभावना अधिक होती है। इस वजह से, उम्मुल को 28 साल की उम्र में 15 से अधिक फ्रैक्चर का सामना करना पड़ा।
उम्मुल ने कहा कि दिल्ली में निजामुद्दीन की बस्तियों थीं। उम्मुल का बचपन इसी स्लम एरिया में बीता है। उम्मुल के पिता फुटपाथ पर मूँगफली बेचा करते थे। 2001 में जब बस्तियों टूट गईं, तो उम्मुल और उनका परिवार त्रिलोकपुरी इलाके में आ गया। त्रिलोकपुरी में किराए के मकान में रहने लगा। उम्मुल उस समय सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी। घर में पैसे नहीं थे इसलिए पढ़ाई की राह आसान नहीं थी। लेकिन उम्मुल पढ़ाई करना चाहती थी, इसलिए उम्मुल ने अपने खर्चों को पूरा करने के लिए खुद बच्चों को ट्यूशन देना शुरू कर दिया।
प्रारंभ में, विकलांग बच्चों को स्कूल में पढ़ाया जाता था:
ITO, दिल्ली में विकलांग बच्चों के लिए एक स्कूल में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की। फिर आठवीं तक की पढ़ाई अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट कड़कड़डूमा में की। आठवीं कक्षा में स्कूल टॉपर थी उम्मुल, फिर स्कॉलरशिप के जरिए एक निजी स्कूल में दाखिला लिया। यहां उम्मुल ने 12वीं तक पढ़ाई की। उम्मुल को 10वीं कक्षा में 91% अंक मिले थे।उम्मुल को 12वीं में 90 फीसदी अंक मिले थे। तब भी उम्मुल अकेली रह रही थी और ट्यूशन पढ़ रही थी। 12वीं के बाद उम्मुल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज से साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन किया। उम्मुल के संघर्ष की कहानी धीरे-धीरे फैली।
पहले प्रयास में आईएएस अधिकारी बनें:
कड़ी मेहनत के बाद उम्मुल खेर ने साल 2017 में पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा पास की और अखिल भारतीय रैंक 420 हासिल की। इसके बाद वह आईएएस अधिकारी बनीं और उनके संघर्ष की कहानी लोगों के लिए प्रेरणा है।